दर्द की कल्पना उसकी
तकलीफ को दोगना कर देती है | क्यों न हम खुशियों की कल्पना कर उसे दोगुना करें –
रॉबिन हौब
एक क्लिनिक का दृश्य डॉक्टर ने कहा इसे इंजेक्शन लगेगा और वो बच्चा जोर – जोर से रोने लगा
| उसकी बारी आने में अभी समय था | बच्चे का रोना बदस्तूर जारी था | उसके माता –
पिता उसे बहुत समझाने की कोशिश कर रहे थे की बस एक मिनट को सुई चुभेगी और तुम्हे
पता भी नहीं चलेगा | फिर तुम्हारी बीमारी ठीक हो जायेगी | पर बच्चा सुई और उसकी
कल्पना करने में उलझा रहा | वो लगातार सुई से चुभने वाले दर्द की कल्पना कर दर्द
महसूस कर रोता रहा |
जब उसकी बारी आई तो नर्स को हाथ में इंजेक्शन लिए देख उसने
पूरी तरह प्रतिरोध करना शुरू किया | नर्स समझदार थी | मुस्कुरा कर बोली ,” ठीक है
मैं इंजेक्शन नहीं लगाउंगी | पर क्या तुमने हमारे हॉस्पिटल की बेहतर चिड़िया देखि
है | वो देखो ! जैसे ही बच्चा चिड़िया देखने लगा | नर्स ने इंजेक्शन लगा दिया |
बच्चा हतप्रभ था | सुई तो एक सेकंड चुभ कर निकल गयी थी | वही सुई जिसके चुभने के
भय से वो घाना भर पहले से रो रहा था |
वो बच्चा था पर क्या हम सब भी ऐसे ही बच्चे
नहीं हैं | क्या हम सब आने वाले कल में होने वाली घटनाओं के बारे में सोंच – सोंच
कर इतने भयभीत नहीं रहते की अपने आज को नष्ट किये रहते हैं | क्या जरूरी नहीं है की हम समझें की दर्द और परेशानी थोड़ी देर के लिए आते हैं और निकल जाते है हम पहले से ही उनको सोंच सोंच कर परेशांन रहते हैं | वो समय जो हम खुशियों में बिता सकते थे , दुःख की कल्पना में बिता देते हैं | फिर भी परेशानी का समय तो झेलना ही पड़ता है | फिर क्यों न लगे की जीवन में दुःख ज्यादा और सुख कम हैं |
वंदना बाजपेयी
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